शुक्रवार, 16 अप्रैल 2010

सद्गृहस्थ की, परिवार निर्माण की जिम्मेदारी उठाने के योग्य शारीरिक, मानसिक परिपक्वता आ जाने पर युवक-युवतियों का विवाह संस्कार कराया जाता है । भारतीय संस्कृति के अनुसार विवाह कोई शारीरिक या सामाजिक अनुबन्ध मात्र नहीं हैं, यहाँ दाम्पत्य को एक श्रेष्ठ आध्यात्मिक साधना का भी रूप दिया गया है । इसलिए कहा गया है 'धन्यो गृहस्थाश्रमः' । सद्गृहस्थ ही समाज को अनुकूल व्यवस्था एवं विकास में सहायक होने के साथ श्रेष्ठ नई पीढ़ी बनाने का भी कार्य करते हैं । वहीं अपने संसाधनों से ब्रह्मचर्य, वानप्रस्थ एवं सन्यास आश्रमों के साधकों को वाञ्छित सहयोग देते रहते हैं । ऐसे सद्गृहस्थ बनाने के लिए विवाह को रूढ़ियों-कुरीतियों से मुक्त कराकर श्रेष्ठ संस्कार के रूप में पुनः प्रतिष्ठित करना आवश्क है । युग निर्माण के अन्तर्गत विवाह संस्कार के पारिवारिक एवं सामूहिक प्रयोग सफल और उपयोगी सिद्ध हुए हैं ।


व्याख्या
संस्कार प्रयोजन
विवाह दो आत्माओं का पवित्र बन्धन है । दो प्राणी अपने अलग-अलग अस्तित्वों को समाप्त कर एक सम्मिलित इकाई का निर्माण करते हैं । स्त्री और पुरुष दोनों में परमात्मा ने कुछ विशेषताएँ और कुछ अपूणर्ताएँ दे रखी हैं । विवाह सम्मिलन से एक-दूसरे की अपूर्णताओं की अपनी विशेषताओं से पूर्ण करते हैं, इससे समग्र व्यक्तित्व का निर्माण होता है । इसलिए विवाह को सामान्यतया मानव जीवन की एक आवश्यकता माना गया है । एक-दूसरे को अपनी योग्यताओं और भावनाओं का लाभ पहुँचाते हुए गाड़ी में लगे हुए दो पहियों की तरह प्रगति-पथ पर अग्रसर होते जाना विवाह का उद्देश्य है । वासना का दाम्पत्य-जीवन में अत्यन्त तुच्छ और गौण स्थान है, प्रधानतः दो आत्माओं के मिलने से उत्पन्न होने वाली उस महती शक्ति का निमार्ण करना है, जो दोनों के लौकिक एवं आध्यात्मिक जीवन के विकास में सहायक सिद्ध हो सके ।

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विवाह का स्वरूप
विवाह का स्वरूप आज विवाह वासना-प्रधान बनते चले जा रहे हैं । रंग, रूप एवं वेष-विन्यास के आकर्षण को पति-पत्नि के चुनाव में प्रधानता दी जाने लगी है, यह प्रवृत्ति बहुत ही द��...


विशेष व्यवस्था
विवाह संस्कार में देव पूजन, यज्ञ आदि से सम्बन्धित सभी व्यवस्थाएँ पहले से बनाकर रखनी चाहिए । सामूहिक विवाह हो, तो प्रत्येक जोड़े के हिसाब से प्रत्येक वेदी पर आवश्यक सामग्री ...


वर-वरण (तिलक)
विवाह से पूर्व 'तिलक' का संक्षिप्त विधान इस प्रकार है- वर पूर्वाभिमुख तथा तिलक करने वाले (पिता, भाई आदि) पश्चिमाभिमुख बैठकर निम्नकृत्य सम्पन्न करें- मङ्गलाचरण, षट्कर्म, ��...


हरिद्रालेपन
विवाह से पूर्व वर-कन्या के प्रायः हल्दी चढ़ाने का प्रचलन है, उसका संक्षिप्त विधान इस प्रकार है- सवर्प्रथम षट्कर्म, तिलक, कलावा, कलशपूजन, गुरुवन्दना, गौरी-गणेश पूजन, सर्वद...


द्वार पूजा
विवाह हेतु बारात जब द्वार पर आती है, तो सर्वप्रथम 'वर' का स्वागत-सत्कार किया जाता है, जिसका क्रम इस प्रकार है- 'वर' के द्वार पर आते ही आरती की प्रथा हो, तो कन्या की माता आरती कर ले��...


विवाह संस्कार का विशेष कमर्काण्ड
विवाह वेदी पर वर और कन्या दोनों को बुलाया जाए, प्रवेश के साथ मङ्गलाचरण 'भद्रं कणेर्भिः.......' मन्त्र बोलते हुए उन पर पुष्पाक्षत डाले जाएँ । कन्या दायीं ओर तथा वर बायीं ओर बैठे । �...


विवाह घोषणा
विवाह घोषणा की एक छोटी-सी संस्कृत भाषा की शब्दावली है, जिसमें वर-कन्या के गोत्र पिता-पितामह आदि का उल्लेख और घोषणा है कि यह दोनों अब विवाह सम्बन्ध में आबद्ध होते हैं । इनका स��...


मङ्गलाष्टक
विवाह घोषणा के बाद, सस्वर मङ्गलाष्टक मन्त्र बोलें जाएँ । इन मन्त्रों में सभी श्रेष्ठ शक्तियों से मङ्गलमय वातावरण, मङ्गलमय भविष्य के निमार्ण की प्रार्थना की जाती है । पाठ क�...


परस्पर उपहार
‍वर पक्ष की ओर से कन्या को और कन्या पक्ष की ओर से वर का वस्त्र-आभूषण भेंट किये जाने की परम्परा है । यह कार्य श्रद्धानुरूप पहले ही हो जाता है । वर-वधू उन्हें पहनाकर ही संस्कार म...


हस्तपीतकरण
शिक्षा एवं प्रेरणा कन्यादान करने वाले कन्या के हाथों में हल्दी लगाते हैं । हरिद्रा मङ्गलसूचक है । अब तक बालिका के रूप में यह लड़की रही । अब यह गृहलक्ष्मी का उत्तरदाय�...


कन्यादान - गुप्तदान
शिक्षा एवं प्रेरणा कन्यादान के समय कुछ अंशदान देने की प्रथा है । आटे की लोई में छिपाकर कुछ धन कन्यादान के समय दिया जाता है । दहेज का यही स्वरूप है । बच्ची के घर से विदा �...


गोदान
दिशा प्रेरणा गौ पवित्रता और परमार्थ परायणता की प्रतीक है । कन्या पक्ष वर को ऐसा दान दें, जो उन्हें पवित्रता और परमार्थ की प्रेरणा देने वाला हो । सम्भव हो, तो कन्यादान �...


मर्यादाकरण
दिशा और प्रेरणा- कन्यादान-गोदान के बाद कन्यादाता वर से सत् पुरुषों और देव शक्तियों की साक्षी में मर्यादा की विनम्र अपील करता है । वर उसे स्वीकार करता है । कन्या का उत्तरदाय��...


पाणिग्रहण
दिशा एवं प्रेरणा वर द्वारा मर्यादा स्वीकारोक्ति के बाद कन्या अपना हाथ वर के हाथ में सौंपे और वर अपना हाथ कन्या के हाथ में सौंप दे । इस प्रकार दोनों एक दूसरे का पाणिग्��...


ग्रन्थिबन्धन
दिशा और प्रेरणा वर-वधू द्वारा पाणिग्रहण एकीकरण के बाद समाज द्वारा दोनों को एक गाँठ में बाँध दिया जाता है । दुपट्टे के छोर बाँधने का अर्थ है-दोनों के शरीर और मन से एक सं...


वर-वधू की प्रतिज्ञाएँ
दिशा और प्रेरणा किसी भी महत्त्वपूर्ण पद ग्रहण के साथ शपथ ग्रहण समारोह भी अनिवार्य रूप से जुड़ा रहता है । कन्यादान, पाणिग्रहण एवं ग्रन्थि-बन्धन हो जाने के साथ वर-वधू द...


प्रायश्चित होम
दिशा एवं प्रेरणा गायत्री मन्त्र की आहुति के पश्चात् पाँच आहुतियाँ प्रायश्चित होम की अतिरिक्त रूप से दी जाती है । वर और कन्या दोनों के हाथ में हवन सामग्री दी जाती है ।...


शिलारोहण
दिशा एवं प्रेरणा शिलारोहण के द्वारा पत्थर पर पैर रखते हुए प्रतिज्ञा करते हैं कि जिस प्रकार अंगद ने अपना पैर जमा दिया था, उसी तरह हम पत्थर की लकीर की तरह अपना पैर उत्तर...


लाजाहोम एवं परिक्रमा (भाँवर)
प्रायश्चित आहुति के बाद लाजाहोम और यज्ञाग्नि की परिक्रमा (भाँवर) का मिला-जुला क्रम चलता है । लाजाहोम के लिए कन्या का भाई एक थाली में खील (भुना हुआ धान) लेकर पीछे खड़ा हो । एक म��...


सप्तपदी
दिशा और प्रेरणा भाँवरें फिर लेने के उपरान्त सप्तपदी की जाती है । सात बार वर-वधू साथ-साथ कदम से कदम मिलाकर फौजी सैनिकों की तरह आगे बढ़ते हैं । सात चावल की ढेरी या कलावा ��...


आसन परिवतर्न
सप्तपदी के पश्चात् आसन परिवतर्न करते हैं । तब तक वधू दाहिनी ओर थी अर्थात् बाहरी व्यक्ति जैसी स्थिति में थी । अब सप्तपदी होने तक की प्रतिज्ञाओं में आबद्ध हो जाने के उपरान्त ��...


पाद प्रक्षालन
आसन परिवतर्न के बाद गृहस्थाश्रम के साधक के रूप में वर-वधू का सम्मान पाद प्रक्षालन करके किया जाता है । कन्या पक्ष की ओर प्रतिनिधि स्वरूप कोई दम्पति या अकेले व्यक्ति पाद प्रक...


शपथ आश्वासन
पति-पत्नी एक दूसरे के सिर पर हाथ रखकर समाज के सामने शपथ लेते हैं, एक आश्वासन देकर अन्तिम प्रतिज्ञा करते हैं कि वे निस्संदेह निश्चित रूप से एक-दूसरे को आजीवन ईमानदार, निष्ठाव�...


मङ्गलतिलक
वधू वर को मंगल तिलक करे । भावना करे कि पति का सम्मान करते हुए गौरव को बढ़ाने वाली सिद्ध होऊ ‍ॐ स्वस्तये वायुमुपब्रवामहै, सोमं स्वस्ति भुवनस्य यस्पतिः । बृहस्पतिं सवर्ग��...


Referance :-
http://hindi.awgp.org/?gayatri/AWGP_Offers/parivar_nirman/sanskar/merriage/

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