सोमवार, 10 अप्रैल 2023

||श्री दत्त आरती १||

 ||श्री दत्त आरती १||


त्रिगुणात्मक त्रैमूर्ती दत्त हा जाणा

त्रिगुणी अवतार त्रैलोक्य राणा

नेति नेति शब्द न ये अनुमाना

सुरवर मुनिजन योगी समाधी न ये ध्याना ॥१॥


जयदेव जयदेव जय श्री गुरुदत्ता ।

आरती ओवाळीता हरली भवचिंता जयदेव जयदेव ॥


सबाह्य अभ्यंतरी तू एक दत्त

अभाग्यासी कैसी न कळे ही मात

पराही परतली तेथे कैचा हा हेत

जन्म मरणाचा पुरलासे अंत ॥२॥


जयदेव जयदेव जय श्री गुरुदत्ता ।

आरती ओवाळीता हरली भवचिंता जयदेव जयदेव ॥


दत्त येऊनिया उभा ठाकला

भावे साष्टांगेसी प्रणिपात केला

प्रसन्न होउनी आशीर्वाद दिधला

जन्ममरणाचा फेरा चुकविला ॥३॥


जयदेव जयदेव जय श्री गुरुदत्ता ।

आरती ओवाळीता हरली भवचिंता जयदेव जयदेव ॥


दत्त दत्त ऐसे लागले ध्यान

हरपले मन झाले उन्मन

मी तू पणाची झाली बोळवण

एका जनार्दनी श्रीदत्त ध्यान ॥४॥


जयदेव जयदेव जय श्री गुरुदत्ता ।

आरती ओवाळीता हरली भवचिंता जयदेव जयदेव ॥

🌹 भगवान का प्रेम... एक सुन्दर कथा...

 


🌹 भगवान का प्रेम... 



 🌹 "जो ठाकुर जी को याद करते हैं, ठाकुर जी भी उनको याद करते हैं और रोते हैं उनके लिए" 🌹


एक व्यक्ति प्रतिदिन मंगला दर्शन के लिए कृष्ण मंदिर में जाया करता था। भगवान् के दर्शन के बाद ही अपने नित्य जीवन कार्य का आरंभ करता था। कई वर्ष तक यह नियम चलता रहा।


एक दिन जैसे ही वह मंदिर पहुँचा तो उसने मंदिर के श्रीप्रभु के द्वार बंद पाये। वह व्याकुल हो गया। अरे ऐसा कैसे हो सकता है?


उसके हृदय को ठेस पहुंची। वह पास ही एक स्थान पर बैठ गया। उनकी आँखों से आँसू बहने लगे, और व्याकुल हृदय से आंतरिक पुकार उठी।


" हे बांके बिहारी जी , 

हे गिर्वरधारी जी।

     जाए छुपे हो कहाँ, 

हमरी बारी जी...।।"


बहते आंसू और हृदय की व्याकुलता ने उसे तड़पा दिया। पूरे तन में विरह की अग्नि जल उठी।


इतने में कहीं से पुकार आयी...

ओ तुने कहाँ लगायी इतनी देर,

अरे ओ बांवरिया! बांवरिया! बांवरिया मेरे प्रिय प्यारे!


वह आसपास देखने लगा, कौन पुकारता है? किन्तु आसपास कोई नही था। वह इधर उधर देखने लगा, पर कोई नही था। वह व्याकुल हो कर बेहोश हो गया।


काफी देर हुई, उनके पैर को जल की एक धारा छूने लगी, और वह होश में आ गया। वह सोचने लगा यह जल आया कहां से? 


धीरे धीरे उठ कर वह जल के स्त्रोत को ढूंढने लगा तो देखा कि वह स्त्रोत श्रीप्रभु के द्वार से आ रहा है।


इतने में फिर से आवाज आई

ओ तुने क्युं लगायी इतनी देर, अरे ओ बांवरिया!


वह सोच में पड गया! यह क्या! यह कौन पुकारता है? यहाँ न कोई है? तो यह पुकार कैसी?


वह फूट फूट कर रोने लगा।

कहने लगा - प्रभु! ओ प्रभु! और फिर से बेहोश हो गया।


बेहोशी में उसने श्री ठाकुर जी के दर्शन पाये और उनकी रूप माधुरी को निहारकर आनंद पाने लगा। उनके चेहरे की आभा तेज होने लगी।


इतने में मंदिर में आरती का शंख बजा। आये हूऐ दर्शनार्थी ने उसे जगाया।


उसे श्री ठाकुर जी के जो दर्शन मंदिर में पाये। ओहहह! वहीं दर्शन थे जो उसे बेहोशी में हुए थे।


इतने में उनकी दृष्टि श्रीप्रभु के नयनों पर पहुंची, और वह स्थिर हो गया। श्रीप्रभु के नयनों में आंसू! ओहहह! वह अति गहराई में जा पहुँचा।।।।


ओहहह! जिस ने जल मुझे स्पर्श किया था वह श्रीप्रभु के अश्रु! .....   

नहीं नहीं! मुझसे यह क्या हो गया? श्रीप्रभु को कष्ट! वह बहुत रोया और बार बार क्षमा माँगने लगा।


श्रीप्रभु ने मुस्कराते दर्शन से कहा, तुने क्युं कर दी देर? अरे अब पल की भी न करना देर ओ मेरे बांवरिया!....🌹🌹


भगवान को किसी पूजा पाठ, किसी कर्मकांड, किसी साधन की आवश्यकता नही। प्रभु को केवल भाव प्रिय है।


जैसे कर्मा बाई ने माना , जैसे धन्ना जाट ने माना..."


भाव के भूखे हैं भगवान्..

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