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सोमवार, 14 नवंबर 2011

माँ लक्ष्मी


नमस्तेस्तु महामाये श्रीपीठे सुरपूजिते।
शङ्खचक्रगदाहस्ते महालक्षि्म नमोस्तु ते॥1॥
नमस्ते गरुडारूढे कोलासुरभयङ्करि।
सर्वपापहरे देवि महालक्षि्म नमोस्तु ते॥2॥
सर्वज्ञे सर्ववरदे सर्वदुष्टभयङ्करि।
सर्वदु:खहरे देवि महालक्षि्म नमोस्तु ते॥3॥
सिद्धिबुद्धिप्रदे देवि भुक्ति मुक्ति प्रदायिनि।
मन्त्रपूते सदा देवि महालक्षि्म नमोस्तु ते॥4॥
आद्यन्तरहिते देवि आद्यशक्ति महेश्वरि।
योगजे योगसम्भूते महालक्षि्म नमोस्तु ते॥5॥
स्थूलसूक्ष्ममहारौद्रे महाशक्ति महोदरे।
महापापहरे देवि महालक्षि्म नमोस्तु ते॥6॥
पद्मासनस्थिते देवि परब्रह्मस्वरूपिणि।
परमेशि जगन्मातर्महालक्षि्म नमोस्तु ते॥7॥
श्वेताम्बरधरे देवि नानालङ्कारभूषिते।
जगत्सि्थते जगन्मातर्महालक्षि्म नमोस्तु ते॥8॥
महालक्ष्म्यष्टकं स्तोत्रं य: पठेद्भक्ति मान्नर:।
सर्वसिद्धिमवापनेति राज्यं प्रापनेति सर्वदा॥9॥
एककाले पठेन्नित्यं महापापविनाशनम्।
द्विकालं य: पठेन्नित्यं धनधान्यसमन्वित:॥10॥
त्रिकालं य: पठेन्नित्यं महाशत्रुविनाशनम्।
महालक्ष्मीर्भवेन्नित्यं प्रसन्ना वरदा शुभा॥11॥


  अर्थत :- इन्द्र बोले- श्रीपीठपर स्थित और देवताओं से पूजित होने वाली हे महामाये। तुम्हें नमस्कार है। हाथ में शङ्ख, चक्र और गदा धारण करने वाली हे महालक्षि्म! तुम्हें प्रणाम है॥1॥ गरुडपर आरूढ हो कोलासुर को भय देने वाली और समस्त पापों को हरने वाली हे भगवति महालक्षि्म! तुम्हें प्रणाम है॥2॥ सब कुछ जानने वाली, सबको वर देने वाली, समस्त दुष्टों को भय देने वाली और सबके दु:खों को दूर करने वाली, हे देवि महालक्षि्म! तुम्हें नमस्कार है॥3॥ सिद्धि, बुद्धि, भोग और मोक्ष देने वाली हे मन्त्रपूत भगवति महालक्षि्म! तुम्हें सदा प्रणाम है॥4॥ हे देवि! हे आदि-अन्त-रहित आदिशक्ते ! हे महेश्वरि! हे योग से प्रकट हुई भगवति महालक्षि्म! तुम्हें नमस्कार है॥5॥ हे देवि! तुम स्थूल, सूक्ष्म एवं महारौद्ररूपिणी हो, महाशक्ति हो, महोदरा हो और बडे-बडे पापों का नाश करने वाली हो। हे देवि महालक्षि्म! तुम्हें नमस्कार है॥6॥ हे कमल के आसन पर विराजमान परब्रह्मस्वरूपिणी देवि! हे परमेश्वरि! हे जगदम्ब! हे महालक्षि्म! तुम्हें मेरा प्रणाम है॥7॥ हे देवि तुम श्वेत वस्त्र धारण करने वाली और नाना प्रकार के आभूषणों से विभूषिता हो। सम्पूर्ण जगत् में व्याप्त एवं अखिल लोक को जन्म देने वाली हो। हे महालक्षि्म! तुम्हें मेरा प्रणाम है॥8॥ जो मनुष्य भक्ति युक्त होकर इस महालक्ष्म्यष्टक स्तोत्र का सदा पाठ करता है, वह सारी सिद्धियों और राज्यवैभव को प्राप्त कर सकता है॥9॥ जो प्रतिदिन एक समय पाठ करता है, उसके बडे-बडे पापों का नाश हो जाता है। जो दो समय पाठ करता है, वह धन-धान्य से सम्पन्न होता है॥10॥ जो प्रतिदिन तीन काल पाठ करता है उसके महान् शत्रुओं का नाश हो जाता है और उसके ऊपर कल्याणकारिणी वरदायिनी महालक्ष्मी सदा ही प्रसन्न होती हैं॥11॥

श्री कृष्ण शरणम ममः ॐ चिन्ता सन्तान हन्तारो यत्पादांबुज रेणवः। स्वीयानां तान्निजार्यान प्रणमामि मुहुर्मुहुः ॥ यदनुग्रहतो जन्तुः सर्व दुःखतिगो भवेत । तमहं सर्वदा वंदे श्री मद वल्लभ नन्दनम॥ माँ लक्ष्मी को आना ही पड़ेगा



कुम्भ. or राहू और केतु. पन्ना रत्न. ग फड़कने का महत्व.." by searching for आँख फड़कना. 9.मनोकामना पूर्ण करने. पन्ना रत्न. कर्क राशि. राहू और केतु. तुला राशि. कुम्भ. भाग्यांक. धनु राशि. अंग फड़कना. पुखराज. तुला राशि. पुखराज. स्वप्न ज्योतिष. लक्ष्मी. मूंगा .राहू और केतु.धनु राशि. मनोकामनाओं की पूर्ति.लक्ष्मी. वृश्चिक.
क्या आपने माँ लक्ष्मी को बुलाया है कैसे ? किस रूप में बुलाया ? किस भेष में ? या सिर्फ व्रत, पूजा पाठ अथवा स्वार्थ की सिद्धि हेतु आमंत्रित किया है.माँ लक्ष्मी की कृपा या तो पैतृक संपत्ति के रूप में होती है या व्यवसाय के लाभ के रूप में अथवा अचानक लाभ के रूप में प्राप्त होती है.यदि इन कारणों से लक्ष्मी नहीं आती तो हम अपने इष्ट देव या अपने अपने धर्म के अनुसार उपाय करते है. आज के युग में माँ लक्ष्मी की कृपा प्राप्त करना अति आवश्यक है इसी कृपा से समाज में यश मिलता है परिवार में इज्जत मिलती है यहां तक कि रिश्ते भी इसी कृपा के कारण बनते और टूटते है.
लक्ष्मी अर्थात लक्ष्य + मी (मेरा लक्ष्य) क्या है किसी लक्ष्य को बना कर यदि धन एकत्रित किया जाय तो वह हमे उस समय लक्ष्य आने पर लक्ष्मी के रूप में मिलता है.एक तो यह विधि है दूसरी विधि यह है कि हम लक्ष्मी को उचित सम्मान दें अर्थात फ़िज़ूल खर्च ना करे अपने को बड़ा दिखाने के आडम्बर को त्याग दे इससे लक्ष्मी रूठ जाती है इसलिए सम्मान करे लक्ष्मी रुपी अपनी माँ और पत्नी का सम्मान भी यही है एक और विधि है आज कल लक्ष्मी जी को हम घर में रखते ही नही बैंक या किसी ओर स्थान पर निवेश करते है एक प्लास्टिक का कार्ड (ए टी एम् ) को लक्ष्मी मानते है तो लक्ष्मी साधन की सही विधि क्या है.पिछले दिनों हरिद्वार में महाकुम्भ में जाने का सुअवसर प्राप्त हुआ देवयोग से एक सिद्ध महापुरुष से इसी विषय पर वार्तालाप हुआ तो उसी वार्ता लाप के अंतर्गत उन्होंने लक्ष्मी प्राप्ति का ऐसा सूत्र सामने रखा जिसे में आज सबके लाभार्थ प्रस्तुत कर रहा हूं

 किसी भी शुक्रवार को शाम के समय अपनी नेक अर्थात शुद्ध कमाई से सात नोट या सिक्के एक समान अर्थात यदि एक का नोट है तो सभी एक के ही नोट ले यदि दो, दस, सौ या पांच सौ या हजार जो भी हो एक समान ही ले कर उस मुद्रा पर अपनी माँ पत्नी बेटी के द्वारा शुद्ध केसर का तिलक लगवा कर किसी सुरक्षित स्थान पर रख दे. प्रत्येक शुक्रवार शाम के ही समय घर के सभी सदस्यों द्वारा हाथो का स्पर्श करवा कर उसी स्थान पर रख दे शाम के समय मिठाई या हलवा बना कर सिर्फ परिवार के सदस्य ग्रहण करे और कुछ नहीं करना अब माँ लक्ष्मी ने ही करना है घर परिवार में आमदनी के साधन खुलेंगे कर्ज में राहत मिलेगी कहने का मतलब है की सुख के सभी मार्ग बनते जायेंगे एक साल के बाद इतने ही नोट उसमे बड़ा दे. यह लक्ष्मी जी को निमंत्रित करने का साधन है इस प्रकार से जब निमंत्रण दोगे तो माँ लक्ष्मी को आना ही पड़ेगा.....

यदि ज्यादा ही उपासना करनी है तो लक्ष्मी जी के इस स्तोत्र का प्रतिदिन पाठ हिंदी अर्थ या संस्कृत में करे जिसकी रचना देवराज इन्द्र ने की है.

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शब्दकोश (Dictionary)
शुभ कार्यों में विशेष रूप से राहू काल के समय का ध्यान रखें. सोमवार:- प्रातः ०७/३० से ०९/०० बजे तक. मंगलवार:-दोपहर ०३/०० से ०४/३० बजे तक. बुधवार:- दोपहर १२/०० से ०१/३० बजे तक. वृहस्पतिवार:- दोपहर ०१/३० से ०३/०० बजे तक. शुक्रवार:- प्रातः १०/३० से दोपहर १२/०० बजे तक. शनिवार:- प्रातः ०९/०० से १०/३० बजे तक. रविवार:- सायं १६/३० से ०६/०० बजे तक.. इस काल को शुभ कार्यों में यथा संभव टाल देना चाहिए..
 

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