जौहरी
एक जौहरी था, और उस की मृत्यु हो गई । मृत्यु के बाद उसके परिवारमें विधवा पत्नी, एक बच्चा व छोटा भाई बचे । छोटे भाईने बड़ेका कारोबार संभाल लिया । विधवा पत्नीने सोच लिया था कि, बच्चा बड़ा होकर एक दिन व्यापारमें हिस्सेदार हो जाएगा । लड़का जब बडा हुआ, तो उसकी मां ने कहा कि मैंने तेरेलिए बहुमूल्य हीरे जवाहरात छिपा कर रखे हुए हैं । तू इन्हें अपने काकाके पास ले जा और उनको यह कहना कि इन्हें बेच देवें ।
लड़का जब अपने काका के पास गया तो उसने वह पोटली खोल कर देखी । काकाने वह पोटली वापिस भिजवा करके तिजोरीमें रखवा दी । उसने लड़केसे कहा कि अभी इनका बाजार भाव ठीक नहीं है ; और तुम आजसे एक घंटा दुकान पर आना शुरु करो । वह लड़का रोजाना आकर काका के साथ दुकान पर बैठने लगा और जौहरी का काम देखने लगा । फिर 1 साल बाद जौहरी काकाने लड़केके घर जाकर कहा, अब बाहर निकाल लाओ तुम्हारी वह हीरे जवाहरात की थैली । अब जब उस लड़केने वह थैली खोल कर देखी तो वह खुद पर हंसा और थैलीको घर के बाहर बने घूरे पर फैंक दिया ।
लड़के की मां यह सब देख करके हैरानी से बोली कि यह तुमने क्या कर दिया ? वह लड़का बोला- मां, आपको मालूम नहीं कि, ये तो नकली कांच के टुकडे थे । तब जौहरी काकाने लड़केसे कहा कि अगर मैं इन्हें नकली कांच कहता, तो वह गड़बड़ धोखा हो जाता । अब तुम्हें स्वयंही दिखाई पड़ गया, तो बात ही खत्म हो गई ।
महापुरुष हमें समझा रहे हैं कि ध्यान किया तो ज्ञान हो गया और आचरण भी हो गया । अतः दर्शन यह हुआ कि झूठे हीरे हैं । ज्ञान यह हुआ कि इनका कोई मोल नहीं है । आचरण यह हुआ कि उनका त्याग कर दिया । "श्री सतगुरु देव जी" फरमा रहे हैं कि जब भीतर का ज्ञान हो जाए, तो चरित्र अपने आप ही बदल जाता है । ज्ञान ही जीवन का वास्तविक मूल व परिवर्तन है । यह ध्यान रहे कि ज्ञान तुम्हें ध्यान में जाने पर ही मिल सकेगा साथी । यह जीवन ज्ञान प्राप्त करने के लिए तुम्हें 'श्री गुरु महाराज जी' का भजन-ध्यान तो करना ही पड़ेगा