दूरबीन के आविष्कार के जनक महर्षी भृगु ऋषी।
आज तक हमें झुठा इतिहास पढाया गया की, दूरबीन का आविष्कार १७ वी शताब्दी में गैलीलियो और हैंस लिपरशी नामक युरोपियन लोगों ने किया।
लेकीन असलीयत तो ये है की दूरबीन का आविष्कार हजारो वर्ष पहले महर्षी भृगु ऋषी ने किया था।
आज भी उसका प्रमाण भृगु संहिता में मिलता हैं।
श्लोक -
" मनोर्वाक्यं समाधाय तेन शिल्पीन्द्र शाश्वतः ।
यन्त्रं चकार सहसा दृष्ट्यर्थे दूरदर्शनम् ॥
पलालाग्नौ दग्धमृदा कृत्वा काचमनश्वरं ।
शोधयित्वा तु शिल्पीन्द्रो नैर्मल्यं क्रियते च ।
चकार बलवत्स्वच्छं पातनं सूपविष्कृतं ॥
वंशपर्वसमाकारं धातुदण्डकल्पितम् ।
तत्पश्चादग्रमध्येषु मुकुरं च विवेश सः ॥"
अर्थात् दूर तक देखने के लिए इस प्रकार का यन्त्र बनाना चाहिये कि पहिले मिट्टी को जलाकर कांच तैयार करे । फिर उसको साफ करके उस स्वच्छ काँच को बांस या धातु की नली में (आदि, मध्य और अन्त में ) लगाकर देखे।
इस तमाम वर्णन से स्पष्ट हो जाता है कि दूरबीन का आविष्कार युरोपियन लोगों ने नही बल्की महर्षी भृगु ऋषी ने किया है।
उसके साथ साथ होयसलेश्वर मंदिर की दीवार पर भी आप देख सकते है हाथ में दूरबीन पकडे हुए व्यक्ती का शिल्प बानाया गया है।
होयसलेश्वर मंदिर का निर्माण १२ वीं शताब्दी में राजा विष्णुवर्धन के काल में हुआ था। मतलब जब युरोपियन लोग हाथ में दूरबीन पकडना भी नहीं जानतें थें उससे ५ शताब्दी पहले प्राचीन भारतीय लोंग दुरबीन बनाना और उसका इस्तमाल करना भी जानते थें।
महर्षी भृगु ऋषी का काल तो ५००० वर्ष इ.सा पूर्व का है मतलब, तब तो गैलीलियो और हैंस लिपरशी के दादा भी पैदा नही हुए होंगे।
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