श्री दुर्गा स्तुति पाठ प्रारंभ पहला अध्याय दोहा:- वंदो गौरी गणपति शंकर और हनोमन | राम नाम प्रारंभ से है सब का कल्याण | गुरुदेव के चरणों की रज मस्तक पे लगाऊ | शारदा माता की क्रपा लेखनी का वर पाऊ | नमो 'नारायण दास जी' विप्रन कुल श्रंगार | पूज्य पिता की कृपा से उपजे शुद्ध विचार | वन्दू सनत समाज को वन्दू भगतन भेख | जीनकी संगत से हुए उल्टे सीधे लेख | आदि शक्ति की वन्दना करके शीश नवाऊ | सप्तशति के पाठ की भाषा सरल बनाऊ | क्षमा करें विद्वान सब जान मुझे अन्जान | चरणों की रज चाहता बालक ' चमन' नादान | -------------------------------- दूसरा आध्याय दुर्गा पाठ का दूसरा शुरूं करूं अध्याय | जिसके सुनने पढ़ने से सब संकट मिट जाये | मेघा ऋषि बोले तभी, सुन राजन धर ध्यान | भगवती देवी की कथा करे सब का कल्याण देंव असुर भयो युद्ध अपारा, महिषासुर दैतन सरदारा | योद्धा बली इन्दर से भिडयो, लडयो वर्ष शतरणते न फिरयों | देव सैना तब भागी भाई, महिषासुर इन्द्रासन पाई | देव ब्रहम सब करें पुकारा, असुर राज लियो छइन हमारा | ब्रह्म देवन संग पधारे, आए विष्णु शंकर दवारे | कही कथा भर नैनन नीरा, प्रभु देत असुर बहु पीरा | सुन शंकर विष्णु अकुलाए, भवें तनी मन क्रोध बढ़ाए | नैन भये त्रयदेव के लाला, मुखन ते निकलयो तेज विशाला | दोहा:- तब त्रयदेव के अंगो से निकला तेज अपार | जिनकी ज्वाला से हुआ उज्जवल सब संसार | सभी तेज इक जा मिल जाई, अतुल तेज बल परयो लखाई | तही तेज सो प्रगटी नारी, देख देव सब भयो सुखायो | शिव के तेज ने मुख उपजायो, धर्म तेज ने केश बनायों | विष्णु तेज से बनी भुजाएं, कुच में चन्दा तेज समाए | नासिका तेज कुबेर बनाई, अग्नि तेज त्रयनेत्र समाई | ब्रह्म तेज प्रकाश फैलाए, रवि तेज ने हाथ बनाएं तेज प्रजापति दांत उपजाए, श्रवण तेज वायु से पाए | सब देवन जब तेज मिलाया, शिवा ने दुर्गा नाम धराया | दोहा:- अटटहास कर गजी जब दुर्गा आध भवानी सब देवन ने शक्ति यह माता करके मानी | शम्भू ने त्रिशूल, चक्र विष्णु ने दिना | अग्नि से शक्ति और शंख वर्ण से लीना | धनुष बाण, तरकश, वायु ने भेंट चढ़ाया | सागर ने रत्नों का माँ को हार पहनाया | सूर्य ने सब रोम किए रोशन माता के | बज्र दिया इन्द्र ने हाथ में जगदाता के | एवरात की घण्टी इंद्र ने दे डारी | सिंह हिमालय ने दीना करने को सवारी | काल ने अपना खड़ग दिया फिर सीस निवाई | ब्रहम जी ने दिया कमण्डल भेंट चढ़ाई | विशकर्मा ने अदभुत इक परसा दे दीना | शेषनाग ने छत्र माता की भेंटा किना | वस्त्र आभूषन नाना भांति देवन पहनाए | रत्न जड़ित मैय्या के सिर पर मुकुट सुहाए | दोहा:- आदि भवानी ने सुनी देवन विनय पुकार | असुरों के संघार को हुई सिंह सवार | रण चण्डी ज्वाला बनी हाथ लिए हथियार | सब देवों ने मिल तभी कीनी जै जै कार | चली सिंह चढ़ दुर्गा भवानी, देव सैन को साथ लियें | सब हथियार सजाये रण के, अति भयानक रूप किये | महिषासुर राक्षस ने जब यह समाचार उनका पाया | लेकर असुरों की सैना जल्दी रण भूमि में आया | दोनों दल जब हुए सामने रण भूमि में लड़ने लगे | क्रोधित हो रण चण्डी चली लाशों पर लाशें पड़ने लगें | भगवती का यह रूप देख असुरों के दिल थें कांप रहे | लड़ने से घबराते थे, कुछ भाग गए कुछ हंप रहे | असुर के साथ करोंडो हाथी घोड़े सैना में आये | देख के दल महिषासुर का व्याकुल हो देवता घबराए | रण चण्डी ने दशों दिशाओं में वोह हाथ फैलाए थें | युद्ध भूमि में लाखों देत्यों के सिर काट गिराये थें | देवी सेना भाग उठी रह गई अकेली दुर्गा ही | महिषासुर सैना के सहित ललकारता आगे बड़ा तभी | उस दुर्गा अष्टभुजी मां ने रण भूमि में लम्बे सांस लिए | श्वास श्वास में अम्बा जी ने लाखों ही गण प्रगट किए | बलशाली गण बढ़ें वो आगे सजे सभी हथियारों से | गुंज उठा आकाश तभी माता के जै जै करों से | पृथ्वी पर असुरों के लहू की लाल नदी वह बहती थी | बच नहीं सकता दैत्य कोंई ललकार के देवी कहती थी | लकड़ी के ढेरों को अग्नि जैसे भस्म बनती है | वैसे ही शक्ति की शक्ति देत्या मिटाती जाती है | सिहं चढ़ी दुर्गा ने पल मैं देत्यों का संहार किया | पुष्प देवो ने बरसाए माता का जै जै कार किया | 'चमन' जो श्रद्धा प्रेम से दुर्गा पाठ को पढता जायेगा | दुःख से वह रहेगा बचता मनवांछित फाल पायेगा | दोहा:- हुआ समाप्त दूसरा दुर्गा पाठ आध्याय | 'चमन' भवानी की दया, सुख सम्पति घर आये | -------------------------------- तीसरा अध्याय दोहा:- चक्षुर ने निज सेना का सुना जभी संहार | क्रोधित होकर लड़ने को आप हुआ तैयार | ऋषि मेघा ने रजा से फिर कहा | सुनों त्रतीय अध्याय की अब कथा | महा योद्धा चक्षुर था अभिमान में | गर्जता हुआ आया मैदान में | वह सेनापति असुरों का वीर था | चलाता महा शक्ति पर तीर था | मगर दुर्गा ने तीर काटे सभी | कई तीर देवी चलाए तभी | जभी तीर तीरों से टकराते थे | तो दिल शूरवीरों के घबराते थे | तभी शक्ति ने अपनी शक्ति चला | वह रथ असुर का टुकड़े टुकड़े किया | असुर देख बल मा का घबरा गया | खड्ग हाथ ले लड़ने को आ गया | किया वार गर्दन पे जब शेर की | बड़े वेग से खड्ग मारी तभी | भुजा शक्ति पर मारा तलवार को | वह तलवार टुकड़े गई लाख हो | असुर ने चलाई जो त्रिशूल भी | लगी माता के तन को वह फूल सी | लगा कांपने देख देवी का बल | मगर क्रोध से चैन पाया न पल | असुर हठी पर माता थी शेर पर | लाई मौत थी दैत्य को घेर कर | उछ्ल सिंह हठी पे ही जा चढ़ा | वह माता का सिंह दैत्य से जा लड़ा | जभी लड़ते लड़ते गिरे पृथ्वी पर | बढ़ी भद्रकाली तभी क्रोध कर | असुर दल का सेनापति मार कर | चली कलि के रूप को धर कर | गर्जती खड्ग को चलती हुई | वह दुष्टों के दल को मिटाती हुई | पवन रूप हलचल मचाती हुई | असुर दल जमी पर सुलाती हुई | लहू की वो नदियां बहाती हुई | नए रूप अपने दिखाती हुई | दोहा:- महांकाली ने असुरों की जब सेना दी मार | महिषासुर आया तभी रूप भैंसे का धार | सवैया : गर्ज उसकी सुनकर लगे भागने गण | कई भगतों को असुर ने संहारा | खुरों से दबाकर कई पीस डालें | लपेट अपनी पूंछ में कईयों को मारा | जमी आसमां को गर्ज से हिलाया | पहाड़ों को सींगों से उसने उखाड़ा | श्वासों से बेहोश लाखों ही कीने | लगे करने देवी के गण हा हा कारा | विकल अपनी सैना को दुर्गा ने देखा | चढ़ी सिंह पर मार किलकार आई | लिए शंख चक्र गदा पदम हाथों | वह त्रिशूल परसा ले तलवार आई | किया रूप शक्ति ने चण्डी का धारण | वह दैत्यों का करने थी संहार आई | लिया बांध भैंसे को निज पाश में झट | असुर ने वो भैंसे की देह पलटाई | बना शेर सन्मुख लगा गरजने वों | तो चण्डी ने हाथों में परसा उठाया | लगी काटने दैत्य के सिर को दुर्गा | तो तज सिंह का रूप नर बन के आया | जो नर रूप की मां ने गर्दन उडाई | तो गज रूप धारण किया बिल बिलाया | लगा खैंचने शेर को सूंड से जब | तो दुर्गा ने सूंड को काट गिराया | कपट माया कर दैत्य ने रूप बदला | लगा भैंसा बन के उपद्रव मचानें | तभी क्रोधित होकर जगत मात चण्डी | लगी नेत्रों से अग्नि बरसानें | धमकते हुए मुख से प्रगटी ज्वाला | लगी अब असुर को ठिकाने लगानें | उछ्ल भैंसे की पीठ पर जा चढ़ी वह | लगी पांवो से उसकी देह को दबाने | दिया काट सर भैंसे का खड़ग से जब | तो आधा ही तन असुर का बाहर आया | तो त्रिशूल जगदम्बे ने हाथ लेकर | महा दुष्ट का सीस धड़ से उड़ाया | चली क्रोध से मैय्या ललकारती तब | किया पल में दैत्यों का सारा सफाया | 'चमन' पुष्प देवों ने मिल कर गिराए | अप्सराओं व गन्ध्वों ने राग गाया | त्रतीय अध्याय में है महिषासुर संहार | 'चमन' पढ़े जो प्रेम से मिटते कष्ट अपार | -------------------------------- चौथा अध्याय आदिशक्ति ने जब किया महिषासुर का नास | सभी देवता आ गये तब माता के पास | मुख प्रसन्न से माता के चरणों में सीस झुकाये | करने लगे स्तुति मीठे बैन सुनायें | हम तेरे ही गुण गातें हैं, चरणों मैं सीस झुकाते हैं | तेरे जे कार मनाते हैं, जै जै अम्बे जै जगदम्बें | जै दुर्गा आदि भवानी की, जै जै शक्ति महरानी की | जै अभयदान वरदानी की , जै अष्टभुजी कल्याणी की | तुम महा तेज शक्तिशाली | तुम ही हो अदभुत बलवाली | तू रण चण्डी तू महाकाली | तुम दूसरों की हो रखवाली-हम तेरे ही गुण गाते हैं | तुम दुर्गा बन कर तारती हों | चण्डी बन दुष्ट संहारती हों | कलि रण में ललकारती हों | शक्ति तुम बिगड़ी संवारती हो-हम तेरे ही गुण गाते हैं | हर दिल में वास तुम्हारा हैं | तेरा ही जगत पसारा हैं | तुमने ही अपनी शक्ति सें | बलवान दैत्य को मारा है-हम तेरे ही गुण गाते हैं | ब्रह्म विष्णु महोदेव बड़े | तेरे दर पर कर जोड़ खड़ें | वर पाने को चरणों में पड़ें | शक्ति पा जा दैत्यों से लड़े-हम तेरे ही गुण गातें हैं | हर विधा का है ज्ञान तुझें | अपनी शक्ति पर मान तुझें | हर इक की है पहचान तुझें | हर दास का माता ध्यान तुझे-हम तेरे ही गुण गाते हैं | ब्रह्म जब दर पर आते हैं | वेदों का पाठ सुनते हैं | विष्णु जी चंवर झुलाते है | शिव शम्भु नाद बजाते है-हम तेरे ही गुण गाते हैं | तू भद्रकाली है कहलाई | तू पारवती बन कर आई | दुनियां के पालन करने को | तू आदि शक्ति है महामाई-हम तेरे ही गुण गाते है | भूखों को अन्न खिलाये तू | भक्तों के कष्ट मिटाये तू | तू दयावान दाती मेरी | हर मन की आस पुजाये तू-हम तेरे ही गुण गाते है | निर्धन के तू भण्डार भरे | तू पतितों का उद्धार करें | तू अपनी भक्ति दे करके | भव सागर से भी पर करे-हम तेरे ही गुण गाते है | है त्रिलोकी में वास तेरा | हर जीव है मैय्या दास तेरा | गुणगाता जमीं आकाश तेरा | हमको भी है विशवास तेरा-हम तेरे ही गुण गाते है | दुनियां के कष्ट मिटा माता | हर एक की आस पूजा माता | हम और नहीं कुछ चाहते हैं | बस अपना दस बना माता-हम तेरे ही गुण गाते है | तू दया करे तो मान भी हो | दुनिया की कुछ पहचान भी हो | भक्ति से पैदा ज्ञान भी हो | तू कृपा करे कल्याण भी हो-हम तेरे ही गुण गाते है | देवों ने प्रेम पुकार करी | मां अम्बे झट प्रसन्न हुई | तब मधुर वाणी से कहने लगी | मांगो वरदान जो मन भए | देवों ने कहा तब हर्षाये | जब भी हम प्रेम से याद करें | मां देना दर्शन दिखलाये-हम तेरे ही गुण गाते है | तब भद्रकाली यह बोल उठी | तुम करोगे याद मुझे जब ही | मैं संकट दूर करूं तब ही | इतना कह अंतरध्यान हुई | तब 'चमन' ख़ुशी हो सब ने कहा | जय जगतारणी भवाणी मां-हम तेरे ही गुण गाते है | वेदों ने पार न पाया है | कैसी शक्ति महामाया है | लिखते लिखते यह दुर्गा पाठ | मेरा भी मन हर्षाया है | नादान 'चमन' पे दया करो | शारदा माता सिर हाथ धरो | जो पाठ प्रेम से पढ़ जाये | मुंह मांगा माता वर पाये | सुख सम्पति उसके घर आये | हर समय तुम्हारे गुण गाये | उसके दुःख दर्द मिटा देना | दर्शन अपना दिखला देना-हम तेरे ही गुण गाते है | जैकार स्तोत्र यह पढ़े जो मन चित लाये | भगवती माता उसके सब देगी कष्ट मिटाए | माता के मन्दिर में जा सात बार पढ़े जोए | शक्ति के वरदान से सिद्ध कामना होए | 'चमन' निरन्तर जो पढ़े पाठ एक ही बार | सदा भवानी सुख दे भरती रहे भण्डार | इस स्तोत्र को प्रेम से जो भी पढ़े सुनाए | हर संकट में भगवती होवे आन सहाए | मान इज्जत सुख सम्पति मिले 'चमन' भरपूर | दुर्गा पाठी से कभी रहे न मैय्या दूर | जगदम्बे महाकालिका चण्डी आदि भवानी | -------------------------------- पांचवा आध्याय ऋषि राज कहने लगे, सुन राजन मन लाय | दुर्गा पाठ का कहता हूं, पांचवा मैं अध्याय | एक समय शुम्भ निशुम्भ दो हुए दैत्य बलवान | जिनके भय से कांपता था यह सारा जहान | इन्द्र आदि को जीत कर लिया सिहासन छीन | खोकर ताज और तख्त को हुए देवता दीन | देव लोक को छोड़ कर भागे जान बचायें | जंगल जंगल फिर रहे संकट से घबराये | तभी याद आया उन्हें देवी का वरदान | याद करोगे जब मुझे करूंगी मई कल्याण | तभी देवताओं ने स्तुति करी | खड़े हो गये हाथ जोड़े सभी | लगे कहने ऐ मैय्या उपकार कर | तू आ जल्दी दैत्यों का संहार कर | प्रक्रति महा देवी भद्रा है तू | तू ही गौरी धात्री व रुद्रा है तू | तू है चन्द्र रूपा तू सुखदायनी | है बेअन्त रूप और कई नाम है | तेरा नाम जपते सुबह शाम है | तू भक्तों कई कीर्ति तू सत्कार है | तू विष्णु कई माया तू संसार है | तू ही अपने दासों कई रखवार है | तुझे मां करोड़ों नमस्कार है | नमस्कार है मां नमस्कार है | तू हर प्राणी में चेतन आधार है | तू ही बुद्धि मन तू ही अहंकार है | तू ही निद्रा बन देती दीदार है | तुझे मां करोड़ों नमस्कार है | नमस्कार है मां नमस्कार है | तू ही छाया बनके है छाई हुई | क्षुधा रूप सब में समाई हुई | तेरी शक्ति का सब में विस्तार है | तुझे मां करोड़ों नमस्कार है | नमस्कार है मां नमस्कार है | है तृष्णा तू ही क्षमा रूप है | यह ज्योति तुम्हारा ही स्वरूप है | तेरी लज्जा से जग शर्मसार है | तुझे मां करोड़ों नमस्कार है | नमस्कार है मां नमस्कार है | तू ही शांति बनके धीरज धराये | तू ही श्रद्धा बनके यह भक्ति बढ़ावे | तू ही कान्ति तू ही चमत्कार है | तुझे मां करोड़ों नमस्कार है | नमस्कार है मां नमस्कार है | तू ही लक्ष्मी बन के भण्डार भरती | तू ही व्रती बनके कल्याण करती | तेरा स्म्रति रूप अवतार है | तुझे मां करोड़ों नमस्कार है | नमस्कार है मां नमस्कार है | तू ही तुष्ठी बनी तन में विख्यात है | तू हर प्राणी की तात और मात है | दया बन समाई तू दातार है | तुझे मां करोड़ों नमस्कार है | नमस्कार है मां नमस्कार है | तू ही भ्रान्ति भ्रम उपजा रही | अधिष्टात्री तू ही कहला रही | तू चेतन निराकार साकार है | तुझे मां करोड़ों नमस्कार है | नमस्कार है मां नमस्कार है | तू ही शक्ति है ज्वाला प्रचण्ड है | तुझे पूजता सारा ब्रह्माण्ड है | तू ही ऋद्धि सिद्धि का भण्डार है | तुझे मां करोड़ों नमस्कार है | नमस्कार है मां नमस्कार है | मुझे ऐसा भक्ति का वरदान दो | 'चमन' का भी उद्धार कल्याण हो | तू दुखिया अनाथों की गमखार है | तुझे मां करोड़ों नमस्कार है | नमस्कार है मां नमस्कार है | नमस्कार स्तोत्र को जो पढ़े | भवानी सभी कष्ट उसके हरे | 'चमन' हर जगह वह मददगार है | तुझे मां करोड़ों नमस्कार है | नमस्कार है मान नमस्कार है | दोहा:- राजा से बोले ऋषि सुन देवन की पुकार | जगदम्बे आई वहां रूप पार्वती धार | गंगा-जल में जब किया भगवती ने स्नान | देवों से कहने लगी किसका करते हो ध्यान | इतना कहते ही शिवा हुई प्रकट तत्काल | पार्वती के अंश से धारा रूप विशाला | शिवा ने कहा मुझ को हैं ध्या रहे | यह सब स्तुति मेरी ही गा रहे | हैं शुम्भ और निशुम्भ के डराये हुए | शरण में हमारी हैं आए हुए | शिवा अंश से बन गई अम्बिका | जो बाकी रही वह बनी कलिका | धरे शैल पुत्री ने यह दोनों रूप | बनी एक सुन्दर बानी एक कुरूप | महांकाली जग में विचारने लगी | और अम्बे हिमालय पे रहने लगी | तभी चंड और मुण्ड आये वहां | विचरती पहाड़ों में अम्बे जहां | अति रूप सुन्दर न देखा गया | निरख रूप मोह दिल में पैदा हुआ | कहा जा के फिर शुम्भ महाराज जी | की देखि है इक सुन्दरी आज ही | चढ़ी सिंह पर सैर करती हुई | वह हर मन में ममता को भरती हुई | चलो आंखो से देख लो भाल लो | रत्न है त्रिलोकी का संभाल लो | सभी सुख चाहे घर में मौजूद है | मगर सुन्दरी बिन वो बेसूद है | वह बलवान राजा है किस काम का | न पाया जो साथी यह आराम का | करो उससे शादी तो जानेंगे हम | महलों में लाओ तो मानेंगे हम | यह सुनकर वचन शुम्भ का दिल बढ़ा | महा असुर सुग्रीव से यूं कहा | जाओ देवी से जाके जल्दी कहो | की पत्नी बनो महलों में आ रहो | तभी दूत प्रणाम करके चला | हिमालय पे जा भगवती से कहा | मुझे भेजा है असुर महाराज ने | अति योद्धा दुनिया के सरताज ने | वह कहता है दुनियां का मालिक हूं मैं | इस त्रिलोकी का प्रतिपालक हूं मैं | रत्न हैं सभी मेरे अधिकार में | मैं ही शक्तिशाली हूं संसार में | सभी देवता सर झुकायें मुझे | सभी विपता अपनी सुनायें मुझे | अति सुन्दर तुम स्त्री रत्न हो | हो क्यों नष्ट करती सुन्दरताई को | बनो मेरी रानी तो सुख पाओगी | न भट्कोगी बन में न दुःख पाओगी | जवानी में जीना वो किस काम का | मिला न विषय सुख जो आराम का | जो पत्नी बनोगी तो अपनाऊंगा | मैं जान अपनी कुर्बान कर जाउंगा | दोहा:- दूत की बातों पर दिया देवी ने न ध्यान | कहा डांट कर सुन अरे मुर्ख खोले के कान | सुना मैंने वह दैत्य बलवान है | वह दुनियां में शहजोर धनवान है | सभी देवता हैं उस से हारे हुए | छुपे फिरते हैं डर के मारे हुए | यह माना की रत्नों का मालिक है वो | सुना यह भी स्राष्टि का पालक है वो | मगर मैंने भी एक पर्ण ठाना है | तभी न असुर का हुकम माना है | जिसे जग में बलवान पाऊँगी मैं | उसे कन्त अपना बनाऊंगी मैं | जो है शुम्भ ताकत के अभिमान में | तो भेजो उसे आये मैदान में | दोहा:- कहा दूत ने सुन्दरी न कर यूं अभिमान | शुम्भ निशुम्भ है दोनों ही, योद्धा अति बलवान | उन से लड़कर आज तक जीत सका न कोय | तू झूठे अभिमान में काहे जीवन खोय | अम्बा बोली दूत से बन्द करो उपदेश | जाओ शुम्भ निशुम्भ को दो मेरा सन्देश | 'चमन' कहे दैत्य जो, वह फिर कहना आए | युद्ध की प्रतिज्ञा मेरी, देना सब समझाए | -------------------------------- छटा अध्याय नव दुर्गा के पाठ का छठा है यह अध्याय | जिसके पढ़ने सुनने से जिब मुक्त हो जय | ऋषिराज कहने लगे सुन राजन मन लाय | दूत ने आकर शुम्भ को दिया हाल बतलाय | सुनकर सब व्रतांत को हुआ क्रोध से लाल | धूम्र-लोचन सेनापति बुला लिया तत्काल | आज्ञा दी उस असुर को सेना लेकर जाओ | केशों से तुम पकड़ कर, उस देवी को लाओ | पाकर आज्ञा शुम्भ की चला दैत्य बलवान | सैना साठ हजार ले जल्दी पहुंचा आन | देखा हिमालय शिखर पर बैठी जगत-आधार | क्रोध में तब सेनापति बोला यूं ललकार | चलो ख़ुशी से आप ही मम स्वामी के पास | नहीं तो गौरव का तेरे कर दूंगा मैं नाश | सुने भवानी ने वचन बोली तज अभिमान | देखूं तो सेनापति कितना है बलवान | मैं अबला तव हाथ से कैसे जान बचाऊं | बिना युद्ध पर किस तरह साठ तुम्हारे जाऊं | लड़ने को आगे बढ़ा सुन कर वचन दलेर | दुर्गा ने हुंकार से किया भस्म का ढेर | सैना तब आगे बढ़ी चले तीर पर तीर | कट कट कर गिरने लगे सिर से जुदा शरीर | मां ने तीखे बाणों की वो वर्षा बरसाई | दैत्यों की सैना सभी गिरी भूमि पे आई | सिंह ने भी कर गर्जना लाखों दिए संहार | सिने दैत्यों के दिये निज पंजों से फाड़ | लाशों के थे लग रहे रण भूमि में ढेर | चहूं तर्फा था फिर रहा जगदम्बा का शेर | धूम्रलोचन और सैना के मरने का सुन हाल | दैत्य राज की क्रोध से हो गई आखें लाल | चंड मुण्ड तब दैत्यों से बोले यूं ललकार | सेना लेकार साथ तुम जाओ हो होशियार | मारो जाकर सिंह को देवी लाओ साथ | जीती गर न आए तो करना उसका घात | देखूंगा उस अम्बे को कितनी बलवाली | जिसने मेरी सैना यह मार सभी डाली | आज्ञा पाकर शुम्भ की चले दैत्य बलबीर | 'चमन' इन्हे ले जा रही मरने को तकदीर | -------------------------------- सातवां अध्याय चंड मुण्ड चतुरंगणी सैना को ले साथ | अस्त्र शस्त्र ले देवी से चले करने दो हाथ | गये हिमालय पर जभी दर्शन सब ने पाए | सिंह चढ़ी मां अम्बिका खड़ी वहां मुस्कराए | लिये तीर तलवार दैत्य माता पे धाए | दुष्टों ने शस्त्र देवी पे कई बरसाए | क्रोध से अम्बा कई आंखो में भरी जो लाली | निकली दुर्गा के मुख से तब ही महाकाली | खाल लपेटी चीते की गल मुंडन माला | लिए हाथ में खप्पर और इक खड़ग विशाला | लपलप करती लाल जुबां मुंह से थी निकली | अति भयानक रूप से फिरती थी महांकाली | अटटहास कर गर्जी तब दैत्यों में धाई | मार धाड़ करके कीनी असुरों की सफाई | पकड़ पकड़ बलवान दैत्य सब मुह में डाले | पांवों नीचे पीस दिए लाखों मतवाले | रुण्डों की माला में काली सीस परोये | कइयों ने तो प्राण ही डर के मारे खोये | चंड मुण्ड यह नाश देख आगे बढ़ आये | महांकाली ने तब अपने कई रंग दीखाये | खड़ग से ही कई असुरों के टुकड़े कर दिने | खप्पर भर भर लगी दैत्यों का पीने | दोहा:- चंड मुण्ड का खड़ग से लीना सीस उतार | आ गई पास भवानी के मार एक किलकार | कहा काली ने दुर्गा से किये दैत्य संहार | शुम्भ निशुम्भ को अपने ही हाथों देना मार | तब अम्बे कहने लागी सुन काली मम बात | आज से चामुण्डा तेरा नाम हुआ विख्यात | चंड मुण्ड को मार कर आई हो तुम आप | आज से घर घर होवेगा नाम तेरे का जाप | जो श्रद्धा विश्वास से सप्तम पढ़े अध्याय | महांकाली की क्रपा से संकट सब मिट जाय | नव दुर्गा का पाठ यह 'चमन' करे कल्याण | पढ़ने वाला पाएगा मुंह मांगा वरदान | --------------------------------
श्री दुर्गा स्तुति पाठ प्रारंभ लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
श्री दुर्गा स्तुति पाठ प्रारंभ लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
मंगलवार, 7 मई 2013
श्री दुर्गा स्तुति पाठ प्रारंभ
सदस्यता लें
संदेश (Atom)