मंगलवार, 7 मई 2013

श्री दुर्गा स्तुति पाठ प्रारंभ

       श्री दुर्गा स्तुति पाठ प्रारंभ 

 पहला अध्याय

 दोहा:- वंदो गौरी गणपति शंकर और हनोमन |
            राम नाम प्रारंभ से है सब का कल्याण |

गुरुदेव के चरणों की रज मस्तक पे लगाऊ |
शारदा माता की क्रपा लेखनी का वर पाऊ | 

नमो 'नारायण दास जी' विप्रन कुल श्रंगार |
पूज्य पिता की कृपा से उपजे शुद्ध विचार |

वन्दू सनत समाज को वन्दू भगतन भेख |
जीनकी संगत से हुए उल्टे सीधे लेख |

आदि शक्ति की वन्दना करके शीश नवाऊ |
सप्तशति के पाठ की भाषा सरल बनाऊ |

        क्षमा करें विद्वान सब जान मुझे अन्जान |
         चरणों की रज चाहता बालक ' चमन' नादान |

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 दूसरा आध्याय 

दुर्गा पाठ का दूसरा शुरूं करूं अध्याय |
जिसके सुनने पढ़ने से सब संकट मिट जाये |
       मेघा ऋषि बोले तभी, सुन राजन धर ध्यान |
       भगवती देवी की कथा करे सब का कल्याण

देंव असुर भयो युद्ध अपारा, महिषासुर दैतन सरदारा |
योद्धा बली इन्दर से भिडयो, लडयो वर्ष शतरणते न फिरयों |
देव सैना तब भागी भाई, महिषासुर इन्द्रासन पाई |
देव ब्रहम सब करें पुकारा, असुर राज लियो छइन हमारा |
ब्रह्म देवन संग पधारे, आए विष्णु शंकर दवारे |
कही कथा भर नैनन नीरा, प्रभु देत असुर बहु पीरा |
सुन शंकर विष्णु अकुलाए, भवें तनी मन क्रोध बढ़ाए |
नैन भये त्रयदेव के लाला, मुखन ते निकलयो तेज विशाला |

दोहा:-   तब त्रयदेव के अंगो से निकला तेज अपार |
            जिनकी ज्वाला से हुआ उज्जवल सब संसार |

सभी तेज इक जा मिल जाई, अतुल तेज बल परयो लखाई |
तही तेज सो प्रगटी नारी, देख देव सब भयो सुखायो |
शिव के तेज ने मुख उपजायो, धर्म तेज ने केश बनायों |
विष्णु तेज से बनी भुजाएं, कुच में चन्दा तेज समाए |
नासिका तेज कुबेर बनाई, अग्नि तेज त्रयनेत्र समाई |
ब्रह्म तेज प्रकाश फैलाए, रवि तेज ने हाथ बनाएं 
तेज प्रजापति दांत उपजाए, श्रवण तेज वायु से पाए |
सब देवन जब तेज मिलाया, शिवा ने दुर्गा नाम धराया |

दोहा:-       अटटहास   कर गजी जब दुर्गा आध भवानी 
                सब देवन ने शक्ति यह माता करके मानी |
शम्भू ने त्रिशूल, चक्र विष्णु ने दिना |
अग्नि से शक्ति और शंख वर्ण से लीना |
धनुष बाण, तरकश, वायु ने भेंट चढ़ाया |
सागर ने रत्नों का माँ को हार पहनाया |
               सूर्य ने सब रोम किए रोशन माता के |
                बज्र दिया इन्द्र ने हाथ में जगदाता के |
एवरात की घण्टी इंद्र ने दे डारी |
सिंह हिमालय ने दीना करने को सवारी |
               काल ने अपना खड़ग दिया फिर सीस निवाई |
              ब्रहम जी ने दिया कमण्डल भेंट चढ़ाई |
विशकर्मा ने अदभुत इक परसा दे दीना |
शेषनाग ने छत्र माता की भेंटा किना |
               वस्त्र आभूषन नाना भांति देवन पहनाए |
                रत्न जड़ित मैय्या के सिर पर मुकुट सुहाए |

    
दोहा:- आदि भवानी ने सुनी देवन विनय पुकार |
          असुरों के संघार को हुई सिंह सवार |
          रण चण्डी ज्वाला बनी हाथ लिए हथियार |
          सब देवों ने मिल तभी कीनी जै जै कार |
चली सिंह चढ़ दुर्गा भवानी, देव सैन को साथ लियें |
सब हथियार सजाये रण के, अति भयानक रूप किये |
महिषासुर राक्षस ने जब यह समाचार उनका पाया |
लेकर असुरों की सैना जल्दी रण भूमि में आया |
दोनों दल जब हुए सामने रण भूमि में लड़ने लगे |
क्रोधित हो रण चण्डी चली लाशों पर लाशें पड़ने लगें |
भगवती  का यह रूप देख असुरों के दिल थें कांप रहे |
लड़ने से घबराते थे, कुछ भाग गए कुछ हंप रहे |
असुर के साथ करोंडो हाथी घोड़े सैना में आये |
देख के दल महिषासुर का व्याकुल हो देवता घबराए |
रण चण्डी ने दशों दिशाओं में वोह हाथ फैलाए थें |
युद्ध भूमि में लाखों देत्यों के सिर काट गिराये थें |
देवी सेना भाग उठी रह गई अकेली दुर्गा ही |
महिषासुर सैना के सहित ललकारता आगे बड़ा तभी |
उस दुर्गा अष्टभुजी मां ने रण भूमि में लम्बे सांस लिए |
श्वास श्वास में अम्बा जी ने लाखों ही गण प्रगट किए |
बलशाली गण बढ़ें वो आगे सजे सभी हथियारों से |
गुंज उठा आकाश तभी माता के जै जै करों से |
पृथ्वी पर असुरों के लहू की लाल नदी वह बहती थी |
बच नहीं सकता दैत्य कोंई ललकार के देवी कहती थी |
लकड़ी के ढेरों को अग्नि जैसे भस्म बनती है |
वैसे ही शक्ति की शक्ति देत्या मिटाती जाती है |
सिहं चढ़ी दुर्गा ने पल मैं देत्यों का संहार किया |
पुष्प देवो ने बरसाए माता का जै जै कार किया |
'चमन' जो श्रद्धा प्रेम से दुर्गा पाठ को पढता जायेगा |
दुःख से वह रहेगा बचता मनवांछित फाल पायेगा |

दोहा:- हुआ समाप्त दूसरा दुर्गा पाठ आध्याय |
     'चमन' भवानी की दया, सुख सम्पति घर आये |
    
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 तीसरा अध्याय 

दोहा:- चक्षुर ने निज सेना का सुना जभी संहार |
           क्रोधित होकर लड़ने को आप हुआ तैयार |
ऋषि मेघा ने रजा से फिर कहा |
सुनों त्रतीय अध्याय की अब कथा |
                  महा योद्धा चक्षुर था अभिमान में |
                  गर्जता हुआ आया मैदान में |
वह सेनापति असुरों का वीर था |
चलाता महा शक्ति पर तीर था |
                 मगर दुर्गा ने तीर काटे सभी |
                  कई तीर देवी चलाए तभी |
जभी तीर तीरों से टकराते थे |
तो दिल शूरवीरों के घबराते थे |
                 तभी शक्ति ने अपनी शक्ति चला |
                  वह रथ असुर का टुकड़े टुकड़े किया |
असुर देख बल मा  का घबरा गया |
खड्ग हाथ ले लड़ने को आ गया |
                    किया वार गर्दन पे जब शेर की |
                     बड़े वेग से खड्ग मारी तभी |
भुजा शक्ति पर मारा तलवार को |
वह तलवार टुकड़े गई लाख हो |
                     असुर ने चलाई जो त्रिशूल भी |
                     लगी माता के तन को वह फूल सी |
लगा कांपने देख देवी का बल |
मगर क्रोध से चैन पाया न पल |
                     असुर हठी पर माता थी शेर पर |
                     लाई मौत थी दैत्य को घेर कर |
उछ्ल सिंह हठी पे ही जा चढ़ा |
वह माता का सिंह दैत्य से जा लड़ा |
                       जभी लड़ते लड़ते गिरे पृथ्वी पर |
                        बढ़ी भद्रकाली तभी क्रोध कर |
असुर दल का सेनापति मार कर |
चली कलि के रूप को धर कर |
                         गर्जती खड्ग को चलती हुई |
                         वह दुष्टों के दल को मिटाती हुई |
पवन रूप हलचल मचाती हुई |
असुर दल जमी पर सुलाती हुई |
लहू की वो नदियां बहाती हुई |
नए रूप अपने दिखाती हुई |

दोहा:- महांकाली ने असुरों की जब सेना दी मार |
          महिषासुर आया तभी रूप भैंसे का धार |
सवैया :  गर्ज उसकी सुनकर लगे भागने गण |
              कई भगतों को असुर ने संहारा |
खुरों से दबाकर कई पीस डालें |
              लपेट अपनी पूंछ में कईयों को मारा |
जमी आसमां को गर्ज से हिलाया |
               पहाड़ों को सींगों से उसने उखाड़ा |
श्वासों से बेहोश लाखों ही कीने |
                लगे करने देवी के गण हा हा कारा |
विकल अपनी सैना को दुर्गा ने देखा |
               चढ़ी सिंह पर मार किलकार आई |
लिए शंख चक्र गदा पदम हाथों |
                 वह त्रिशूल परसा ले तलवार आई |
किया रूप शक्ति ने चण्डी का धारण |
                  वह दैत्यों का करने थी संहार आई |
लिया बांध भैंसे को निज पाश में झट |
                   असुर ने वो भैंसे की देह पलटाई |
बना शेर सन्मुख लगा गरजने वों |
                    तो चण्डी ने हाथों में परसा उठाया |
लगी काटने दैत्य के सिर को दुर्गा |
                     तो तज सिंह का रूप नर बन के आया |
जो नर रूप की मां ने गर्दन उडाई |
                   तो गज रूप धारण किया बिल बिलाया |
लगा खैंचने शेर को सूंड से जब |
                    तो दुर्गा ने सूंड को काट गिराया |
कपट माया कर दैत्य ने रूप बदला |
                     लगा भैंसा बन के उपद्रव मचानें |
तभी क्रोधित होकर जगत मात चण्डी |
                       लगी नेत्रों से अग्नि बरसानें |
धमकते हुए मुख से प्रगटी ज्वाला |
                        लगी अब असुर को ठिकाने लगानें |
उछ्ल भैंसे की पीठ पर जा चढ़ी वह |
                       लगी पांवो से उसकी देह को दबाने |
दिया काट सर भैंसे का खड़ग से जब |
                        तो आधा ही तन असुर का बाहर आया |
तो त्रिशूल जगदम्बे ने हाथ लेकर |
                        महा दुष्ट का सीस धड़ से उड़ाया |
चली क्रोध से मैय्या ललकारती तब |
                    किया पल में दैत्यों का सारा सफाया |
'चमन' पुष्प देवों ने मिल कर गिराए |
                      अप्सराओं व गन्ध्वों ने राग गाया |
 त्रतीय अध्याय में है महिषासुर संहार |
'चमन' पढ़े जो प्रेम से मिटते कष्ट अपार | 


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 चौथा  अध्याय  

आदिशक्ति ने जब किया महिषासुर का नास |
सभी देवता आ गये तब माता के पास |

मुख प्रसन्न से माता के चरणों में सीस झुकाये |
करने लगे स्तुति मीठे बैन सुनायें |

हम तेरे ही गुण गातें हैं, चरणों मैं सीस झुकाते हैं |
तेरे जे कार मनाते हैं, जै जै अम्बे जै जगदम्बें |

जै दुर्गा आदि भवानी की, जै जै शक्ति महरानी की |
जै अभयदान वरदानी की , जै अष्टभुजी कल्याणी की |  

     तुम महा तेज शक्तिशाली |
     तुम ही हो अदभुत बलवाली |
     तू  रण चण्डी तू महाकाली |

तुम दूसरों की हो रखवाली-हम तेरे ही गुण गाते हैं |

     तुम दुर्गा बन कर तारती हों |
     चण्डी बन दुष्ट संहारती हों |
     कलि रण में ललकारती हों |

शक्ति तुम बिगड़ी संवारती हो-हम तेरे ही गुण गाते हैं |

     हर दिल में वास तुम्हारा हैं |
     तेरा ही जगत पसारा हैं |
     तुमने ही अपनी शक्ति सें |

बलवान दैत्य को मारा है-हम तेरे ही गुण गाते हैं |
     ब्रह्म विष्णु महोदेव बड़े |
     तेरे दर पर कर जोड़ खड़ें |
     वर पाने को चरणों में पड़ें |
शक्ति पा जा दैत्यों से लड़े-हम तेरे ही गुण गातें हैं |

     हर विधा का है ज्ञान तुझें |
     अपनी शक्ति पर मान तुझें |
     हर इक की है पहचान तुझें |

हर दास का माता ध्यान तुझे-हम तेरे ही गुण गाते हैं |

     ब्रह्म जब दर पर आते हैं |
     वेदों का पाठ सुनते हैं |
    विष्णु जी चंवर झुलाते है |

शिव शम्भु नाद बजाते है-हम तेरे ही गुण गाते हैं |

       तू भद्रकाली है कहलाई |
       तू पारवती बन कर आई |
       दुनियां के पालन करने को |

तू आदि शक्ति है महामाई-हम तेरे ही गुण गाते है |

       भूखों को अन्न खिलाये तू |
       भक्तों के कष्ट मिटाये तू |
       तू दयावान दाती मेरी |

हर मन की आस पुजाये तू-हम तेरे ही गुण गाते है |

       निर्धन के तू भण्डार भरे |
       तू पतितों का उद्धार करें |
       तू अपनी भक्ति दे करके |

भव सागर से भी पर करे-हम तेरे ही गुण गाते है |

       है त्रिलोकी में वास तेरा |
      हर जीव है मैय्या दास तेरा |
      गुणगाता जमीं आकाश तेरा |

हमको भी है विशवास तेरा-हम तेरे ही गुण गाते है |

       दुनियां के कष्ट मिटा माता |
       हर एक की आस पूजा माता |
       हम और नहीं कुछ चाहते हैं |

बस अपना दस बना माता-हम तेरे ही गुण गाते है |

      तू दया करे तो मान भी हो |
     दुनिया की कुछ पहचान भी हो |
     भक्ति  से  पैदा  ज्ञान भी  हो |

तू कृपा करे कल्याण भी हो-हम तेरे ही गुण गाते है |

     देवों  ने  प्रेम पुकार करी |
     मां  अम्बे  झट  प्रसन्न  हुई |
    तब मधुर वाणी से कहने लगी |
    मांगो  वरदान  जो  मन  भए |
     देवों  ने  कहा   तब   हर्षाये |
     जब भी हम प्रेम से याद करें |

मां देना दर्शन दिखलाये-हम तेरे ही गुण गाते है |

     तब भद्रकाली यह बोल उठी |
     तुम करोगे याद मुझे जब ही |
     मैं  संकट  दूर  करूं  तब  ही |
     इतना कह अंतरध्यान हुई |
     तब 'चमन' ख़ुशी हो सब ने कहा |

जय जगतारणी भवाणी मां-हम तेरे ही गुण गाते है |

     वेदों ने पार न पाया है |
     कैसी शक्ति महामाया है |
     लिखते लिखते यह दुर्गा पाठ |
     मेरा  भी  मन  हर्षाया   है |
     नादान 'चमन' पे दया करो |
     शारदा माता सिर हाथ धरो |
     जो पाठ प्रेम से पढ़ जाये |
     मुंह मांगा माता वर पाये |
     सुख सम्पति उसके घर आये |
     हर समय तुम्हारे गुण गाये |
     उसके दुःख दर्द मिटा देना |

दर्शन अपना दिखला देना-हम तेरे ही गुण गाते है |

     जैकार स्तोत्र यह पढ़े जो मन चित लाये |
     भगवती माता उसके सब देगी कष्ट मिटाए |
     माता के मन्दिर में जा सात बार पढ़े जोए |
     शक्ति के वरदान से सिद्ध कामना होए |

     'चमन' निरन्तर जो पढ़े पाठ एक ही बार |
     सदा भवानी सुख दे भरती रहे भण्डार |
     इस स्तोत्र को प्रेम से जो भी पढ़े सुनाए |
     हर संकट में भगवती होवे आन सहाए |

     मान इज्जत सुख सम्पति मिले 'चमन' भरपूर |
     दुर्गा पाठी से कभी रहे न मैय्या दूर |
     जगदम्बे महाकालिका चण्डी आदि भवानी |

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  पांचवा आध्याय

ऋषि राज कहने लगे, सुन राजन मन लाय |
दुर्गा पाठ का कहता हूं, पांचवा मैं अध्याय |

     एक समय शुम्भ निशुम्भ दो हुए दैत्य बलवान |
     जिनके भय से कांपता था यह सारा जहान |

इन्द्र आदि को जीत कर लिया सिहासन छीन |
खोकर ताज और तख्त को हुए देवता दीन |

     देव लोक को छोड़ कर भागे जान बचायें |
     जंगल जंगल फिर रहे संकट से घबराये |

तभी याद आया उन्हें देवी का वरदान |
याद करोगे जब मुझे करूंगी मई कल्याण |

     तभी देवताओं ने स्तुति करी |
     खड़े हो गये हाथ जोड़े सभी |

लगे कहने ऐ मैय्या उपकार कर |
तू आ जल्दी दैत्यों का संहार कर |

     प्रक्रति महा देवी भद्रा है तू |
     तू ही गौरी धात्री व रुद्रा है तू |

तू है चन्द्र रूपा तू सुखदायनी |
     है बेअन्त रूप और कई नाम है |
     तेरा नाम जपते सुबह शाम है |

तू भक्तों कई कीर्ति तू सत्कार है |
तू विष्णु कई माया तू संसार है |
तू ही अपने दासों कई रखवार है |

     तुझे मां करोड़ों नमस्कार है |
     नमस्कार है मां नमस्कार है |

तू हर प्राणी में चेतन आधार है |
तू ही बुद्धि मन तू ही अहंकार है |
तू ही निद्रा बन देती दीदार है |

     तुझे मां करोड़ों नमस्कार है |
     नमस्कार है मां नमस्कार है |

तू ही छाया बनके है छाई हुई |
क्षुधा रूप सब में समाई हुई |
तेरी शक्ति का सब में विस्तार है |

     तुझे मां करोड़ों नमस्कार है |
     नमस्कार है मां नमस्कार है |

     है तृष्णा तू ही क्षमा रूप है |
     यह ज्योति तुम्हारा ही स्वरूप है |
     तेरी लज्जा से जग शर्मसार है |

तुझे मां करोड़ों नमस्कार है |
नमस्कार है मां नमस्कार है |

     तू ही शांति बनके धीरज धराये |
     तू ही श्रद्धा बनके यह भक्ति बढ़ावे |
     तू ही कान्ति तू ही चमत्कार है |

तुझे मां करोड़ों नमस्कार है |
नमस्कार है मां नमस्कार है |

     तू ही लक्ष्मी बन के भण्डार भरती |
     तू ही व्रती बनके कल्याण करती |
     तेरा स्म्रति रूप अवतार है |

तुझे मां करोड़ों नमस्कार है |
नमस्कार है मां नमस्कार है |

     तू ही तुष्ठी बनी तन में विख्यात है |
     तू हर प्राणी की तात और मात है |
     दया बन समाई तू दातार है |

तुझे मां करोड़ों नमस्कार है |
नमस्कार है मां नमस्कार है |

     तू ही भ्रान्ति भ्रम उपजा रही |
     अधिष्टात्री  तू ही कहला रही |
     तू चेतन निराकार साकार है |

तुझे मां करोड़ों नमस्कार है |
नमस्कार है मां नमस्कार है |

     तू ही शक्ति है ज्वाला प्रचण्ड है |
     तुझे पूजता सारा ब्रह्माण्ड है |
     तू ही ऋद्धि सिद्धि का भण्डार है |

तुझे मां करोड़ों नमस्कार है |
नमस्कार है मां नमस्कार है |

     मुझे ऐसा भक्ति का वरदान दो |
     'चमन' का भी उद्धार कल्याण हो |
     तू दुखिया अनाथों की गमखार है |

तुझे मां करोड़ों नमस्कार है |
नमस्कार है मां नमस्कार है |

     नमस्कार स्तोत्र को जो पढ़े |
     भवानी सभी कष्ट उसके हरे |
     'चमन' हर जगह वह मददगार है |

तुझे मां करोड़ों नमस्कार है |
नमस्कार है मान नमस्कार है |

दोहा:- राजा से बोले ऋषि सुन देवन की पुकार |
          जगदम्बे आई वहां रूप पार्वती धार |
         गंगा-जल में जब किया भगवती ने स्नान |
         देवों से कहने लगी किसका करते हो ध्यान |

इतना कहते ही शिवा हुई प्रकट तत्काल |
पार्वती के अंश से धारा रूप विशाला |

         शिवा ने कहा मुझ को हैं ध्या रहे |
         यह सब स्तुति मेरी ही गा रहे |

हैं शुम्भ और निशुम्भ के डराये हुए |
शरण में हमारी हैं आए हुए |

         शिवा अंश से बन गई अम्बिका |
         जो बाकी रही वह बनी कलिका |

धरे शैल पुत्री ने यह दोनों रूप |
बनी एक सुन्दर बानी एक कुरूप |

         महांकाली जग में विचारने लगी |
         और अम्बे हिमालय पे रहने लगी |

तभी चंड और मुण्ड आये वहां |
विचरती पहाड़ों में अम्बे जहां |

         अति रूप सुन्दर न देखा गया |
          निरख रूप मोह दिल में पैदा हुआ |

कहा जा के फिर शुम्भ महाराज जी |
की देखि है इक सुन्दरी आज ही |

        चढ़ी सिंह पर सैर करती हुई |
         वह हर मन में ममता को भरती हुई |

चलो आंखो से देख लो भाल लो |
रत्न है त्रिलोकी का संभाल लो |
सभी सुख चाहे घर में मौजूद है |
मगर सुन्दरी बिन वो बेसूद है |

         वह बलवान राजा है किस काम का |
         न पाया जो साथी यह आराम का |

करो उससे शादी तो जानेंगे हम |
महलों में लाओ तो मानेंगे हम |

         यह सुनकर वचन शुम्भ का दिल बढ़ा |
         महा असुर सुग्रीव से यूं कहा |

जाओ देवी से जाके जल्दी कहो |
की पत्नी बनो महलों में आ रहो |

         तभी दूत प्रणाम करके चला |
         हिमालय पे जा भगवती से कहा |

मुझे भेजा है असुर महाराज ने |
अति योद्धा दुनिया के सरताज ने |

         वह कहता है दुनियां का मालिक हूं मैं |
         इस त्रिलोकी का प्रतिपालक हूं मैं |

रत्न हैं सभी मेरे अधिकार में |
मैं ही शक्तिशाली हूं संसार में |

         सभी देवता सर झुकायें मुझे |
         सभी विपता अपनी सुनायें मुझे |

अति सुन्दर तुम स्त्री रत्न हो |
हो क्यों नष्ट करती सुन्दरताई को |

         बनो मेरी रानी तो सुख पाओगी |
         न भट्कोगी बन में न दुःख पाओगी |

जवानी में जीना वो किस काम का |
मिला न विषय सुख जो आराम का |

         जो पत्नी बनोगी तो अपनाऊंगा |
         मैं जान अपनी कुर्बान कर जाउंगा |

 दोहा:- दूत  की बातों पर दिया देवी ने न ध्यान |
      कहा डांट कर सुन अरे मुर्ख खोले के कान |

सुना मैंने वह दैत्य बलवान है |
वह दुनियां में शहजोर धनवान है |

         सभी देवता हैं उस से हारे हुए |
         छुपे फिरते हैं डर के मारे हुए |

यह माना की रत्नों का मालिक है वो |
सुना यह भी स्राष्टि का पालक है वो |

         मगर मैंने भी एक पर्ण ठाना है |
         तभी न असुर का हुकम माना है |

जिसे जग में बलवान पाऊँगी मैं |
उसे कन्त अपना बनाऊंगी मैं |

         जो है शुम्भ ताकत के अभिमान में |
         तो भेजो उसे आये मैदान में |

दोहा:- कहा दूत ने सुन्दरी न कर यूं अभिमान |
     शुम्भ निशुम्भ है दोनों ही, योद्धा अति बलवान |

उन से लड़कर आज तक जीत सका न कोय |
तू झूठे अभिमान में काहे जीवन खोय |

         अम्बा बोली दूत से बन्द करो उपदेश |
         जाओ शुम्भ निशुम्भ को दो मेरा सन्देश |

'चमन' कहे दैत्य जो, वह फिर कहना आए |
युद्ध की प्रतिज्ञा मेरी, देना सब समझाए |


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              छटा अध्याय 

नव दुर्गा के पाठ का छठा है यह अध्याय |
जिसके पढ़ने सुनने से जिब मुक्त हो जय |

         ऋषिराज कहने लगे सुन राजन मन लाय |
         दूत ने आकर शुम्भ को दिया हाल बतलाय |

सुनकर सब व्रतांत को हुआ क्रोध से लाल |
धूम्र-लोचन सेनापति बुला लिया तत्काल |

         आज्ञा दी उस असुर को सेना लेकर जाओ |
         केशों से तुम पकड़ कर, उस देवी को लाओ |

पाकर आज्ञा शुम्भ की चला दैत्य बलवान |
सैना साठ हजार ले जल्दी पहुंचा आन |

         देखा हिमालय शिखर पर बैठी जगत-आधार |
         क्रोध में तब सेनापति बोला यूं ललकार |

चलो ख़ुशी से आप ही मम स्वामी के पास |
नहीं तो गौरव का तेरे कर दूंगा मैं नाश |

         सुने भवानी ने वचन बोली तज अभिमान |
         देखूं तो सेनापति कितना है बलवान |

मैं अबला तव हाथ से कैसे जान बचाऊं |
बिना युद्ध पर किस तरह साठ तुम्हारे जाऊं |

         लड़ने को आगे बढ़ा सुन कर वचन दलेर |
         दुर्गा ने हुंकार से किया भस्म का ढेर |

सैना तब आगे बढ़ी चले तीर पर तीर |
कट कट कर गिरने लगे सिर से जुदा शरीर |

         मां ने तीखे बाणों की वो वर्षा बरसाई |
         दैत्यों की सैना सभी गिरी भूमि पे आई |

सिंह ने भी कर गर्जना लाखों दिए संहार |
सिने दैत्यों के दिये निज पंजों से फाड़ |

लाशों के थे लग रहे रण भूमि में ढेर |
चहूं  तर्फा था फिर रहा जगदम्बा का शेर |

         धूम्रलोचन  और सैना के मरने का सुन हाल |
         दैत्य राज की क्रोध से हो गई आखें लाल |

चंड मुण्ड तब दैत्यों से बोले यूं ललकार |
सेना लेकार साथ तुम जाओ हो होशियार |

         मारो जाकर सिंह को देवी लाओ साथ |
         जीती गर न आए तो करना उसका घात |

देखूंगा उस अम्बे को कितनी बलवाली |
जिसने मेरी सैना यह मार सभी डाली |

         आज्ञा पाकर शुम्भ की चले दैत्य बलबीर |
         'चमन' इन्हे ले जा रही मरने को तकदीर |

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 सातवां अध्याय 

चंड मुण्ड  चतुरंगणी  सैना को ले साथ |
अस्त्र शस्त्र ले देवी से चले करने दो हाथ |

गये हिमालय पर जभी दर्शन सब ने पाए |
सिंह चढ़ी मां अम्बिका खड़ी वहां मुस्कराए |

         लिये तीर तलवार दैत्य माता पे धाए |
         दुष्टों ने शस्त्र देवी पे कई बरसाए |

क्रोध से अम्बा कई आंखो में भरी जो लाली |
निकली दुर्गा के मुख से तब ही महाकाली |

         खाल लपेटी चीते की गल मुंडन माला |
         लिए हाथ में खप्पर और इक खड़ग विशाला |

लपलप करती लाल जुबां मुंह से थी निकली |
अति भयानक रूप से फिरती थी महांकाली |

         अटटहास कर गर्जी तब दैत्यों में धाई |
         मार धाड़ करके कीनी असुरों की सफाई |

पकड़ पकड़ बलवान दैत्य सब मुह में डाले |
पांवों नीचे पीस दिए लाखों मतवाले |

          रुण्डों की माला में काली सीस परोये |
         कइयों ने तो प्राण ही डर के मारे खोये |

चंड मुण्ड यह नाश देख आगे बढ़ आये |
महांकाली ने तब अपने कई रंग दीखाये |

         खड़ग से ही कई असुरों के टुकड़े कर दिने |
         खप्पर भर भर लगी दैत्यों का पीने |

दोहा:- चंड मुण्ड का खड़ग से लीना सीस उतार |
         आ गई पास भवानी के मार एक किलकार |

कहा काली ने दुर्गा से किये दैत्य संहार |
शुम्भ निशुम्भ को अपने ही हाथों देना मार |

         तब अम्बे कहने लागी सुन काली मम बात |
         आज से चामुण्डा तेरा नाम हुआ विख्यात |

चंड मुण्ड को मार कर आई हो तुम आप |
आज से घर घर होवेगा नाम तेरे का जाप |

         जो श्रद्धा विश्वास से सप्तम पढ़े अध्याय |
         महांकाली की क्रपा से संकट सब मिट जाय |

नव दुर्गा का पाठ यह 'चमन' करे कल्याण |
पढ़ने वाला पाएगा मुंह मांगा वरदान |


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