महामृत्युंजय जपविधि
महामृत्युंजय जपविधि
॥ इति महामृत्युंजय जपविधिः ॥
विद्वानो के अनुशार महामृत्युंजय मंत्र के जप और उपासना साधक को अपनी आवश्यकता के अनुरूप करने से विशेष लाभप्रद होते हैं। आवश्यक्ता के अनुशार जप के लिए अलग-अलग मंत्रों का प्रयोग होता हैं। मंत्र के अक्षरों में संख्या के कारण मंत्रों में विविधता हो जाती हैं।
मंत्र निम्न प्रकार से है-
एकाक्षरी (1) मंत्र- 'हौं' ।
त्र्यक्षरी(3) मंत्र- 'ॐ जूं सः'।
चतुराक्षरी(4) मंत्र- 'ॐ वं जूं सः'।
नवाक्षरी(9) मंत्र- 'ॐ जूं सः पालय पालय'।
दशाक्षरी(10) मंत्र- 'ॐ जूं सः मां पालय पालय'।
(दशाक्षरी मंत्र का जप स्वयं के लिए उक्त क्रम में करें। यदि किसी अन्य व्यक्ति के लिए दशाक्षरी मंत्र का जप किया जा रहा हो तो 'मां' के स्थान पर उस व्यक्ति का नाम लेना चाहिए)
वेदोक्त मंत्र-
महामृत्युंजय का वेदोक्त मंत्र निम्न लिखित हैं।
महामृत्युंजय का वेदोक्त मंत्र निम्न लिखित हैं।
त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्॥
महामृत्युंजय मंत्र में 32 शब्दों का प्रयोग हुआ है और महामृत्युंजय मंत्र में ॐ लगा देने से 33 शब्द हो जाते हैं।
इसे 'त्रयस्त्रिशाक्षरी या तैंतीस अक्षरी मंत्र कहते हैं।
श्री वशिष्ठजी ने 33 अक्षर के 33 देवता अर्थात् शक्तियाँ निश्चित की हैं जो निम्नलिखित हैं।
महामृत्युंजय मंत्र में 8 वसु, 11 रुद्र, 12 आदित्य 1 प्रजापति तथा 1 वषट को माना हैं।
महामृत्युंजय मंत्र में 8 वसु, 11 रुद्र, 12 आदित्य 1 प्रजापति तथा 1 वषट को माना हैं।
मंत्र विचार :महामृत्युंजय मंत्र के प्रत्येक शब्द को स्पष्ट करना अति आवश्यक हैं। क्योंकि शब्द से ही मंत्र है और मंत्र से ही शक्ति हैं।
महामृत्युंजय मंत्र में प्रयोग किए गए प्रत्येक शब्द अपने आप में एक संपूर्ण अर्थ लिए हुए होता हैं और इसी में देवादि का बोध कराता है।
शब्द बोधक
'त्र' ध्रुव वसु
'यम' अध्वर वसु
'ब' सोम वसु
'ब' सोम वसु
'कम्'
उक्त बोधक को देवताओं के नाम माने जाते हैं।
शब्द की शक्ति-
महामृत्युंजय मंत्र में प्रयोग हुए शब्द की शक्ति निम्न प्रकार से मानी गई हैं।
शब्द शक्ति
शब्द की शक्ति-
महामृत्युंजय मंत्र में प्रयोग हुए शब्द की शक्ति निम्न प्रकार से मानी गई हैं।
शब्द शक्ति
महामृत्युंजय मंत्र के शब्दो का यह पूर्ण विवरण 'देवो भूत्वा देवं यजेत' के अनुसार पूर्णतः सत्य प्रमाणित मानेगये हैं।
महामृत्युंजय के अलग-अलग मंत्र का उल्लेख मिलता हैं।
महामृत्युंजय के अलग-अलग मंत्र का उल्लेख मिलता हैं।
साधक अपनी आवश्यक्ता/सुविधा के अनुसार चाहें जो भी मंत्र चुन लें और उस मंत्र का नित्य पाठ कर सकते हैं या अपनी आवश्यकता के अनुशार उचित समय प्रयोग कर सकते हैं।
मंत्र निम्नलिखित हैं-
तांत्रिक बीजोक्त मंत्र:
तांत्रिक बीजोक्त मंत्र:
ॐ भूः भुवः स्वः। ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्। स्वः भुवः भूः ॐ॥
संजीवनी मंत्र:
उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्। स्वः भुवः भूः ॐ॥
संजीवनी मंत्र:
ॐ ह्रौं जूं सः। ॐ भूर्भवः स्वः। ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्। उर्वारुकमिव बन्धनांन्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्। स्वः भुवः भूः ॐ। सः जूं ह्रौं ॐ ।
महामृत्युंजय का प्रभावशाली मंत्र:
महामृत्युंजय का प्रभावशाली मंत्र:
महामृत्युंजय मंत्र जाप में सावधानियाँ
महामृत्युंजय मंत्र का जप करना मनुष्य के लिये परम फलदायी और कल्याणकारी माना गया हैं।
लेकिन महामृत्युंजय मंत्र का जप कुछ सावधानियाँ रख कर करना चाहिए। जिससे मंत्र का संपूर्ण लाभ प्राप्त हो सके और किसी भी प्रकार के अनिष्ट की संभावना न रहें।
इस लिए महामृत्युंजय मंत्र का जप करने से पूर्व निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिए।
1. साधक को महामृत्युंजय मंत्र का जो भी मंत्र जपना हो उसका उच्चारण पूर्ण शुद्धता से करें।
2. मंत्र जप एक निश्चित संख्या में करें। पूर्व दिवस में जपे गए मंत्रों से, आगामी दिनों में कम संख्या में मंत्रों का जप नहीं करना चाहिए। यदि चाहें तो अधिक संख्या में जप सकते हैं।
3. विशेष प्रयोजन के किए जा रहे मंत्र का उच्चारण होठों से बाहर नहीं जाना चाहिए। यदि अभ्यास न हो तो धीमे स्वर में जप करें।
4. जप काल में धूप और दीप
2. मंत्र जप एक निश्चित संख्या में करें। पूर्व दिवस में जपे गए मंत्रों से, आगामी दिनों में कम संख्या में मंत्रों का जप नहीं करना चाहिए। यदि चाहें तो अधिक संख्या में जप सकते हैं।
3. विशेष प्रयोजन के किए जा रहे मंत्र का उच्चारण होठों से बाहर नहीं जाना चाहिए। यदि अभ्यास न हो तो धीमे स्वर में जप करें।
4. जप काल में धूप और दीप
कब करें महामृत्युंजय मंत्र जाप?
· शास्त्रोक्त विधान के अनुशार महामृत्युंजय मंत्र जप से अकाल मृत्यु तो टलने के उपरांत आरोग्यता की भी प्राप्ति होती हैं।
· यदि स्नान करते समय शरीर पर पानी डालते समय महामृत्युंजय मंत्र का जप करने से स्वास्थ्य-लाभ होता हैं।
· दूध को देखते हुए महामृत्युंजय मंत्र
महामृत्युंजय जपविधि - (मूल संस्कृत में)
कृतनित्यक्रियो जपकर्ता स्वासने पांगमुख उदहमुखो वा उपविश्य धृतरुद्राक्षभस्मत्रिपुण्ड्रः । आचम्य । प्राणानायाम्य। देशकालौ संकीर्त्य मम वा यज्ञमानस्य अमुक कामनासिद्धयर्थ श्रीमहामृत्युंजय मंत्रस्य अमुक संख्यापरिमितं जपमहंकरिष्ये वा कारयिष्ये।
॥ इति प्रात्यहिकसंकल्पः॥
· आसनः
ॐ पृथ्वि त्वया धृता लोका देवि त्वं विष्णुना धृता।
ॐ पृथ्वि त्वया धृता लोका देवि त्वं विष्णुना धृता।
॥ इति भूतशुद्धिः ॥
जप
अथ महामृत्युंजय जपविधि
संकल्पतत्र संध्योपासनादिनित्यकर्मानन्तरं भूतशुद्धिं प्राण प्रतिष्ठां च कृत्वा प्रतिज्ञासंकल्प कुर्यात ॐ तत्सदद्येत्यादि सर्वमुच्चार्य मासोत्तमे मासे अमुकमासे अमुकपक्षे अमुकतिथौ अमुकवासरे अमुकगोत्रो अमुकनाम मम शरीरे ज्वरादि-
संकल्पतत्र संध्योपासनादिनित्यकर्मानन्तरं भूतशुद्धिं प्राण प्रतिष्ठां च कृत्वा प्रतिज्ञासंकल्प कुर्यात ॐ तत्सदद्येत्यादि सर्वमुच्चार्य मासोत्तमे मासे अमुकमासे अमुकपक्षे अमुकतिथौ अमुकवासरे अमुकगोत्रो अमुकनाम मम शरीरे ज्वरादि-
रोगनिवृत्तिपूर्वकमायुरारोग्यलाभार्थं वा धनपुत्रयश सौख्यादिकिकामनासिद्धयर्थ श्रीमहामृत्युंजयदेव प्रीमिकामनया यथासंख्यापरिमितं महामृत्युंजयजपमहं करिष्ये।
(अमुक
के स्थान पर वर्तमान मास-पक्ष-तिथि-वास- का उचारण करें और अमुक गोत्रो व
नाम के स्थान पर जिसके लिये जप किया जा रहा हो उस व्यक्ति के गोत्र व नाम
का उचारण करना चाहिए)
· अथ यष्यादिन्यासः
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